झांसी। जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार ने किसानों को खेत में पराली/फसल अवशषों को न जलाये जाने के उददेश्य से जागरुक करने पर जोर दिया। उन्होने कहा कि देश में अब ऐसी तकनीकें विकसित हो चुकी है, जिससे पराली को बेचकर कमाई की जा सकती है। पराली का अब कई तरह से उपयोग हो रहा है, जिससे नये उत्पादों से उद्योग को बढ़ावा, खेतों में उर्वरता, मशरुम की खेती, चारे में उपयोग तथा बिजली उत्पादन आदि प्रमुख है।जिलाधिकारी ने फसल अवशेष (पराली) की जानकारी देते हुये बताया कि धान के पुआल में पाये जाने घटकों में सिलिका, लिग्निन, सेलूलोज, हेमिसेलूलोज, निम्न पाचन शक्ति 40 फीसदी व उच्च कार्बन नत्रजन 90 फीसदी होता है, जो खेत के लिये काफी लाभदायक सिद्व हो सकता है। उन्होने कहा कि किसानों को जागरुक करते हुये उन्हें प्रेरित करना होगा कि वह पराली जलाने से हो रहे प्रदूषण को रोककर अब एक नया रास्ता अपनाये और प्रदेश हित में योगदान देना सुनिश्चित करें।जिलाधिकारी ने बताया कि समर एग्रो वेंचर्स नामक कम्पनी ने धान, गेहूँ और गन्ने जैसी फसलों के अपशिष्टों को 10 -14 दिनों में जैविक रुप से अपघटित करने के लिये कई सूक्ष्म जीवों को मिलाकर तकनीकी विकसित कर डिकोम्प एक्टिवेटर नामक स्प्रे बनाया है, जिसमें एरोबिक, माइक्रोएसेफिलिक और ऑयल डिफोम्पोसिंग बैक्टीरिया शमिल है। दो लीटर डिकोम्प एक्टिवेटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव करने से फसल अवशेष खेत में अपघटित होकर खाद में परिवर्तित हो जाते है। जिलाधिकारी ने कहा कि पराली से खाद हर किसान देसी तरीक़े से भी तैयार कर सकते है और उस खाद से कृषि योग्य भूमि को उपजाऊ बना सकते है। उन्होने कहा कि पराली से कम्पोस्ट खाद बनाने के लिये एक गहरा गढ्ढा लेकर उसमें पुआल (पराली) की परत जिसे पानी लगाकर नम कर दें। अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये टाॅक फास्फेट 01 प्रतिशत, पाइराइट 10 प्रतिशत का मिश्रण प्रत्येक गढढे पर डाल दें या गोबर की सड़ी खाद, गोबर का घोल व खेत की मिट्टी डालकर रख दें, जिससे एक प्रभावशाली पोषक कम्पोस्ट खाद बनकर तैयार हो जाती है।जिलाधिकारी ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिक ने अपने परिश्रम से मात्र बीस रुपये में जीवाणुओं (बैक्टीरिया) से ऐसे कैप्सूल तैयार किये है जो पराली को कम्पोस्ट खाद में बदल देते है। इसके लिये 150 ग्राम पुराने गुड़ को पानी में लेकर उबालना है और उबलते समय आई सारी गन्दगी को बाहर निकाल देना है। घोल को ठण्डा कर उसे 05 लीटर पानी में घोलकर लगभग 50 ग्राम बेसन मिलाना है, फिर 04 कैप्सूल को खोलकर अधिक चौड़े मुंह वाले प्लास्टिक या मिट्टी के बर्तन में रखे उस घोल में अच्छी तरह से मिला देना है, मिलाते समय सावधानी बरतना अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि अब इस बने घोल को 05 दिनों के लिय किसी गर्म स्थान पर रख दें। जिससे जीवाणुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाये। अब इस लगभग 05 लीटर कम्पोस्ट घोल को पानी के साथ खेतों में छिड़काव करें। 10 -15 दिनों के भीतर यह 10 कुंटल पराली को गलाकर खाद में बदलने में कामयाब है। उन्होंने कहा कि इसके कोई साइड इफेक्ट नही है, बल्कि इसके इस्तेमाल से खेत की नमी और मित्र कीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है। प्रदूषण की इतनी बड़ी समस्या को हल करने वाली यह एक कमाल की खोज है।
✍️रिपोर्ट-राजीव दीक्षित, झांसी
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